जनवरी 18, 2015

' दस्तक '...... नयी नस्ल अदब के दरवाज़े पर !!!




               उर्दू अदब में ग़ज़ल को हमेशा एक दिलचस्प विधा के रूप में देखा जाता रहा है। इस विधा को यूं तो अमीर ख़ुसरो से लेकर मीर ग़ालिब-इकब़ाल-फ़िराक जैसे नामचीन और उसके बाद के अनगिनत शाइरों ने और भी समृद्ध किया है लेकिन अस्सी की दहाई और उसके बाद के पैदाइश वाले शाइरों ने भी अपने पूरे जतन- सामर्थ्य के साथ इस विधा को शादाब करने का काम किया है। इस नयी पौध ने बीते कुछ बरसों में अदब के हलक़ों में अपनी पुख़्ता आमद दर्ज करायी है। इन्हीं शाइरों की शाइरी का एक सकंलन ‘दस्तक’ नाम से प्रकाशन संस्थान ने प्रकाशित किया है। इस मजमूअ: में विकास शर्मा ‘राज’, सग़ीर आलम, सालिम सलीम, ग़ालिब अयाज़, मुईद रशीदी, स्वप्निल तिवारी, पराग अग्रवाल, दिनेश नायडू, सैय्यद तालीफ़ हैदर, ज़िया ज़मीर, इरशाद खान सिकन्दर, मनोज अज़हर, अभिषेक शुक्ला, सिराज फै़सल ख़ान, गौतम राजरिशी, बृजेश अम्बर, ‘सज्जन’ धर्मेन्द्र, विपुल कुमार, वीनस केसरी, अंकित सफर, आदिल रज़ा मंसूरी, प्रखर मालवीय, अमीर इमाम, जतिन्दर ‘परवाज’ तथा पवन कुमार को शामिल किया गया है। बहैसियत संपादक/संकलनकर्ता मैंने इस मज़्मुए में ग़ज़लकारों के विषय में अपनी राय लिखते हुये शाइरों की प्रतिनिधि शाइरी भी प्रस्तुत की है। इस मज्मुअे के शुरू में मैंने 'ग़ज़ल के सफर' पर भी मुख़्तसर सी रोशनी डालने की कोशिश की है, जिसमें ग़ज़ल के सात सौ बरस के इतिहास तथा ग़ज़ल की खुसूसियत पर कुछ लिखने की कोशिश भर की है।

                   बहरहाल! ‘दस्तक’ उन तमाम शोअरा को आप हज़रात के सामने लाने की महज छोटी-सी कोशिश भर है, मुमकिन है कि तमाम ऐसे शोअरा हमारी नजर से छूट गए हों जो इस मज्मुअे में शामिल होते तो यह कोशिश और बेहतर होती मगर यह मानते हुये कि हर कोशिश में गुंजाइश हमेशा बनी रहती है, और इस पर अमल करते हुये इस काम को अंजाम दिया गया है। इस कोशिश को आप सब तक लाने में प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली के श्री हरीशचन्द्र शर्मा जी , डा0 लाल रत्नाकर (चित्रकार), जनाब अक़ील नोमानी, श्री तुफैल चतुर्वेदी, श्री मयंक अवस्थी, जनाब आदिल रज़ा मंसूरी, श्री मनीष शुक्ला, श्री उमापति (प्रवक्ता उर्दू), श्रीमती अंजू सिंह (शरीक ए हयात) का विशेष सहयोग रहा है । आप सब का आभारी हूँ ! एक बार फिर सभी शोअरा का और ख़ासकर आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया!
यद्दपि  चाहत थी कि इस संकलन का विमोचन किसी कार्यक्रम में कराऊँ किन्तु समयाभाव के कारण ये मुमकिन न हो सका ! एक अनौपचारिक से कार्यक्रम में ' शीन क़ाफ़ निज़ाम ' साहब से इसका विमोचन करा लिया गया है।तमन्ना है कि जल्द ही दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित कर इस संकलन का औपचारिक विमोचन भी करा लूँ ।
                 फ़िलहाल ' दस्तक ' आपके प्यार की मुन्तज़िर है...................!